कागा ढूंढें श्राद्ध में, भोग खिलाएं अन्न। तृप्त होय आशीष दें, होवें पितर प्रसन्न।। कागा ढूंढें श्राद्ध में, भोग खिलाएं अन्न। तृप्त होय आशीष दें, होवें पितर प्रस...
श्राद्ध के दिनों में पूर्वजों को अपनी अतृप्त चाह पुरी करने के लिए आने का आहवान करती यह कविता... श्राद्ध के दिनों में पूर्वजों को अपनी अतृप्त चाह पुरी करने के लिए आने का आहवान क...
पोखर किनारे धूप में.. पीपल की छाँव में मुझको सुकून मिलता है बस अपने गाँव में। पोखर किनारे धूप में.. पीपल की छाँव में मुझको सुकून मिलता है बस अपने गाँव में।
समझना जरूरी है कीमत प्रकृति की, वक्त गुजर रहा है मुट्ठी में बंद रेत की तरह।। समझना जरूरी है कीमत प्रकृति की, वक्त गुजर रहा है मुट्ठी में बंद रेत की तरह।।
चाह कर भी कभी न तोड़ सके ऐसी बेड़ी हमारे पाँव में थी। चाह कर भी कभी न तोड़ सके ऐसी बेड़ी हमारे पाँव में थी।